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विश्वकर्मा स्तुति
जय विश्वकर्म कृपालु बुद्धि विलास सब सुखदायकम्।
भवसिन्धु तारक त्रिजग पितुविधि विष्णु शम्भू सहायकम्।।
संसार सिरजनहार परम उदार जन मन रंजनम्।
जय विश्वपाल दयाल दानव दैत्य दल बल भंजनम्।।
छिति गगन पावक पवन जल शशि भानु ग्रह परिचालकम्।
यमकाल दस दिगपाल सुर सुरपाल कहं प्रतिपालकम्।।
अनवद्य अवद्य अनन्त अनवधि अज अनादि अनामयम्।
जय सगुन निर्गुण ज्ञाननिधि कल्याण पद करूणा अयम्।।
निर्भ्रम निरामय निगम गम निर्द्वन्द्व नित्य निरंजनम्।
अवतार धर्म प्रचार हित त्रयभुवन भार विभंजनम्।।
विधु बाल भाल विशाल लोचन ललित कक्रज कृपाकरम्।
प्रणमामि पुंगव पंचमुख छवि कोटि चन्द्र प्रभा धरम्।।
गज सूत्र पुस्तक पद्म धर भज चारि चारू विधायकम्।
जल थल गगन मय अचर चर नर नाग सुर मुनिनायकम्।।
जग मगत कुण्डल कलित मनि मुकुट रवि छवि छिंदितम्।
उपवीत उर पटपीत सुचि रूचि तडित कोटि विनिंदितम्।।
सर्वांग सुन्दर गौर तनुवर विविध भूषण सज्ज्तिम्।
कन्दर्प कोटिक दर्प तजि लावण्य लखि अति लज्जितम्।।
जय ब्रह्म कुल अवतंस वाहन हंस वंश विभूषणम्।
तब सरन संकट हरण मंगल करण अमल अदूषणम्।।
विश्वेश विश्वम्भर विलक्षण विश्वकर्म कृपालयम्।
ब्रह्माण्ड व्यापक विगत स्त्रम विश्रामप्रद भक्ति त्वयम्।।
आनन्द कन्द अमन्द पद अरविंद सुरमुनि वदिंतम्।
मन भुंग यश मकरन्द लहि किन होहि परमानदिंतम्।।
कह दास कौतुक करहि जे जन आस पद कंजारूणम्।
ते होंहि हियतनु सहित निश्चय रहति भव भय दारूणम्।।
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