सुमेर चंद

मानव सेवा पुरस्कार प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता, इण्डस्ट्रियल एस्टेट, सोनीपत (हरियाणा)

आपका का जन्म 7 जून, 1933 को गाँव गोडाना (डरियाणा) में हुआ। आप सड़क दुर्घटना में घायल को देखने के बाद आगे तभी जाते हैं, जब उस अस्पताल में भर्ती करवाकर उसके घर खबर कर दें। अब तक 68 लोगों को अस्पताल में भर्ती करवा कर उनके घर खबर कर चुके हैं। ये गिनीज बुक का रिकॉर्ड होगा। 20 वर्ष से कम उम्र का लड़का बीड़ी पीता मिले तो उसे समझाए बिना आगे नहीं जाते।
पहले वन महोत्सव पर बड़ का पौधा लगाया था और अब तक 1045 पेड़ लगवा कर जिन्दा रखें हैं। अपनी आँखें 1982 में और पूरा शरीर AIIMS दिल्ली को देने की शपथ 1992 में ले चुके हैं।
इनकी पुस्तक 'प्रजातन्त्र-हनन्त' (नाटक) को अकादमी द्वारा प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। आपके 'रीति रिवाज' को सी.सी.आर.टी. में दिया जाता है। म्हारी दीदी परदादी आले गीतों की पुस्तकें लड़कियों के स्कूल व कॉलेजों में दी जाती है।
मर गया, जय हिन्द, दो रूपिया (उपन्यास), हरियाणा संस्कृति की हरियाली, हरियाणा तन्ने दिखाऊँ और हिन्दी, हरियाणवी व अंग्रेजी भाषा की 22 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। और अन्य पुस्तकें छप रही हैं एवं 31वीं पुस्तक अंग्रेजी में स्लीपिंग गॉड पर कार्य प्रगति पर है। दो रूपिया उपन्यास का देश के चोटी के विद्वानों ने सराहा है। इस उपन्यास पर शोध भी हो चुका है। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि सुमेरचन्द को चौथी बार पुरस्कार मिला हैं।
मर गया, जय हिन्द पर फिल्म भी बन रही है। शहीद भगतसिंह के जन्मदिन पर जालंधर (पंजाब) को देश प्रेम हाल में यह नाटक खेला जाता है। इनका एक लोक साहित्य ग्रंथ 'म्हारे मेले ठेले' भारत सरकार द्वारा प्रकाशित हुआ है एवं इनका एक सीरियल हरियाणा संस्कृति की हरियाली भी उपलब्ध है। संक्षेप में यदि आपको वर्तमान हिन्दी जगता के मुंशी प्रेमचन्द की संज्ञा दी जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इन पंक्तियों का लेखक 1947 में भारत की आजादी का मूल्य चुका कर 16 वर्ष की आयु में क्वेटा बिलूचिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) से हजारों मील लम्बे मार्ग से नंगे सिर-नंगे पाँव फटे हाल में भारत आया तो इधर-उधर भटक कर 1951 में फरीदाबाद पहुंच गया। रेडियो फैक्ट्री में मेहनत मजदूरी करने लगा और धीरे-धीरे हरियाणा में भारतीय विश्वकर्मा समाज भा.वि.स. के कर्णधारों से स्वजाति प्रेम बढ़ गया एवं 23 मई 1978 को विश्वकर्मा एज्यूकेशन ट्रस्ट के रूप में एक अनूठे सामाजिक मंच की स्थापना की गई, तो सर्वसम्मति से भाई सुमेर चन्द को ट्रस्ट का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। आपने अपने 25 वर्ष के कार्यकाल में ट्रस्ट के ट्रस्टियों की दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी की।